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Monday, September 9, 2019

Shuttle Cab Service Dwarka - Gurugram

Shuttle Cab Service Dwarka - Gurugram

Shuttle Cab Service
Dwarka - Gurugram
Gurugram - Dwarka
Now go to the office on time and reach home safe.
Late arrival of cabs in early morning shifts, No availability of shuttle buses, getting stuck in unsafe and cramped private vehicles, traffic stress while driving your own vehicle, the hurry to reach home early in the evening, has filled everyone's life with tension and undue stress.
Keeping these various concerns in mind, we have started a comfortable, safe and stress-free shuttle can service for you. It is available at low and affordable rates.
The cabs available are 4 seater, and fully Air Conditioned driven mostly by the vehicle owner itself to ensure the safety of the passengers.
So, leave the worry of commute now, and book your seat with us for a hassle free ride.
Call & Whatsapp Me now
Naresh Kumar
Mb.: 07042162907
Dwarka
Routs Charges and more information

Saturday, April 14, 2018

Uber Driving Experiences उबेर ड्राइवर अनुभव

Uber Driving Experiences
उबेर ड्राइवर अनुभव 

मुझे उबेर में गाड़ी चलाते हुए लगभग एक साल हो गया हैं. मैं अपनी पोस्ट के द्वारा अपना अनुभव आप लोगो तक पहुंचने का प्रयास कर रहा हूँ पाठक किर्प्या पोस्ट पढ़े और एक चालक को बेहतर सेवा देने में अपना सहयोग करे. 
१३ अप्रैल, २०१८ 
राजौरी गार्डन दिल्ली के पास का वाक्या 
मेरे पास एक पूल की बुकिंग आयी. बुकिंग में दो सवारी के लिए सीट बुक थी. मैं लोकेशन पर पहुंचा तो वह केवल एक लड़की मिली और गाड़ी में बैठते ही जल्दी जल्दी चलो कहने लगी. और बोली मेरा दूसरा फ्रेंड राजौरी गार्डन मेट्रो स्टेशन पर हैं उसको वह से लेना हैं। जो उस लोकेशन से २ किमी से ज्यादा दूर था और जाम के कारन 15 मिनट शो हो रहा था। 
इस बीच एक और पिकअप एड हो गया जा पंजाबी बाग़ से था और १० मिनट दूर था। 
मैंने उस लड़की को कहा की मेरा एक पाप और ह और आपका फ्रेंड जहाँ खड़ा हैं वह मेरे रूट पर नहीं ह मने दूसरा पाप लेना ह इस लिए म आपके फ्रेंड को लेने नहीं जा सकता पूल में इस तरह नहीं होता। 
तब वह लड़की गुस्से में बोली पैसे देते हैं लेना पड़ेगा मैं देखती हु कैसे नहीं चलते। 
मेरे दूसरे पिकअप से बार बार जल्दी आने के लिए फोन आ रहे थे।
मैंने uber में फोन करके सारी स्तिथि बताई तो उन्होंने कहा की आप ट्रिप अभी समाप्त कर दीजिये और उनको गाड़ी छोड़ने के लिए कह दे।  उनको पूल के नियम बताये। मने कहा की म नियम बता चूका हूँ लेकिन वो अनाप सनाप बोले जा रही हैं और अब धमकिया भी दे रही हैं।  उबेर ने कहा की हम कुछ नहीं कर सकते आप ट्रिप एन्ड कर दीजिये।
मैंने ट्रिप एन्ड कर दिया।  इस दौरान मेरा दूसरा पिकअप भी कैंसिल हो गया।
मने उस लड़की को कहाँ की आप गाड़ी से उतर जाये मने ट्रिप एन्ड कर दिया ह आप पर कोई चार्ज नहीं लगेगा न ही मैं आपसे पैसा मांग रहा हूँ।
तो वह लड़की गाड़ी से नहीं उत्तरी और गालिया देने लगी बोली तुम जैसे 50 - 50 रु में चक्कर काटते हैं म देखती हूँ कैसे गाड़ी चलाओगे म नहीं उतरूंगी।  उसने फोन करके अपने साथी को भी बुला लिया वह भी आकर गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी तोड़ने की धमकी देने लगा।
मने दुबारा उबेर में कॉल की लेकिन वह से कोई हेल्प नहीं मिली कहा की आप अपने आप निपटिए।
मने 100 न. पर कॉल करके पुलिस को सब बताया।  इसके आधे घंटे बाद कांस्टेबल आया जिसको देखकर वे दोनों कॉलोनी में भाग गए।
कांस्टेबल ने कहा की अपने भागने नहीं देना चाहिए था।  मने कहा की क्या म उनसे लड़ाई करता फिर आप हम ड्राइवर के ऊपर ही इल्जाम लगते और हमें परेशां करते।
इस सरे वाकये में उबेर ने कोई हेल्प नहीं की. 

Wednesday, September 28, 2016

सच्ची प्रेम कहानी Indian True Love Story

श्वेता और कपिल 
सच्ची प्रेम कहानी 
जरूर पढ़े 
कुछ दिन पहले फार्म पर एक चिड़िया और चिड़ा आये। वे हर रोज दाना चुगने आते। चिड़ा चिड़िया को देखता रहता। चिड़ा मन ही मन चिड़िया को चाहने लगा। एक दिन चिड़े ने चिड़िया को अपने दिल की बात कह दी वो चिड़िया से बोला- की तुम हर रोज लाम्बा साहब के यहाँ दाना खाने आती हो और मैं तुम्हे देखता रहता हूँ तुम मुझे अच्छी लगने लगी हो। मेरी चाहत दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। लगता हैं मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ। चिड़िया शर्मा कर बोलीं बस आगे कुछ मत कहो मेरा भी यही हाल हैं मैंने जबसे तुम्हे देखा हैं मैं भी तुम्हे चाहने लगी हूँ। जब तुम छुप छुपकर मुझे देखते हो तो मन में मोहबत मचलने लगती हैं। 

उन दोनों ने अपने प्यार का आखिर इजहार कर ही दिया कुछ दिन वे दोनों मिलते और एक दूसरे से मोहब्बत करते रहे। मैं अक्सर उनको एक साथ देखता।
एक दिन चिड़े ने चिड़िया को प्यार से कहा - प्रिय हमें बहुत दिन हो गए एक दूसरे से मिलते हुए। तुम मेरी जीवन साथी बन जाओ। चिड़िया लजा गयी और सर झुककर धीरे से बोली तुम्हारी जीवनसाथी बनकर प्यार करते हुए जीवन बिताने के लिए ही तो मैं धरती पर आई हूँ लेकिन हम रहेंगे कहाँ अभी तो तुमने अपना घोसला भी नहीं बनाया हैं। आगे बरसात आने वाली हैं। तुम जल्दी से एक घोसले की जगह तलाश कर लो और बनाना शुरू कर दो। मैं भी तुम्हारी मदद करुँगी। चिड़े ने कहाँ ठीक हैं कल मिलकर घोसले के लिए जगह तय कर लेंगे।
अगले दिन जब वे मिले तो चिड़िया ने कहा हमारी मुलाकात लाम्बा साहब के आँगन में हुयी हैं यंही पर हमारा प्यार हुआ और यहाँ खाना-पानी सब कुछ हैं। क्यों न हम यही पर अपना घोसला बनाए। लाम्बा साहब के यहाँ हम पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। तो चिड़े ने तुरंत सहमति देते हुए घोसला बनाने की बात कही और कमरे के अंदर लोहे के गाटर के कोने में घोलसा बनाना शुरू कर दिया। लेकिन वो बार बार तिनका रखता और तिनका गिर जाता। इसी तरह उसको १०-१२ दिन लग गए तिनका टिक नहीं पा रहा था रखते ही फिसल जाता। चिड़े ने भी हार नहीं मानी और वो लगातार प्रयास करता रहा।

मैं कुछ दिन पहले फार्म पर गया तो उसको इसी तरह देखता रहता वो बार बार प्रयास करता रहता मैंने सोचा चिड़ा मेहनती हैं और ये अपना घोसला बना ही लेते हैं ये भी जरूर बना लगा। फिर ५-६ दिन बाद मैं दिल्ली लौट आया।
जब मैं २ जून को दुबारा फार्म पर गया तो मैंने देखा चिड़ा अभी तक घोसला नहीं बना पाया था वो अभी भी तिनके ज़माने की कोशिश कर रहा था। होसला तो बहुत था उसमे लेकिन वह उदास और मायूस लग रहा था। चिड़िया उससे कह रही थी की अगर एक दो दिन में घोसला नहीं बना तो उसके माता
पिता किसी और चिड़े के साथ उसको भेज देंगे। चिड़िया की आँखों में आंसू थे चिड़े का भी दिल घबरा रहा था। वो बार बार आसमान की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखता ओर फिर तिनका उठाकर जमाने की कोशिश करता। मेरे मन में अचानक ये ख्याल आया की लगता हैं चिड़े की चीत्कार ईश्वर तक पहुँच गयी हैं और उसने इस चिड़े और चिड़िया की मोहब्बत को परवान चढ़ाने के लिए मुझे शायद जरिया बनाकर भेज हैं। मुझे याद आया की लगभग ४ साल पहले जब मैं Girls PG चलाता था तब एक लड़की श्वेता रहती थी एक बार उसको किसी ने फूलों का गुलदस्ता लड़की के फ्रेम में दिया था। वह फ्रेम मैंने ये कहकर रख दिया था की इसको किसी पेड़ पर बांध देंगे ताकि कोई चिड़िया इसमें घोसला बना ले। वह फ्रेम मैं एक दिन फार्म पर ले गया था। वह मेरे पास रखा हुआ था।
मैंने उस फ्रेम को ऊपर कमरे की छत के पास फिर कर दिया।

अगले ही सुबह सुबह मैंने देखा की चिड़ा और चिड़िया ने उसको तिनके से भर दिया और घोसला बना लिया।
मैंने देखा दोनों बहुत खुश थे और पूरा दिन उछालते कूदते रहते और प्यार से अपने घोसले में रहने लगे।
मैंने इस चिड़िया और चिड़े का नाम श्वेता और कपिल रखा हैं।

Friday, October 23, 2015

भविष्य क्या हैं ?

भविष्य क्या हैं ?
What is future?
भविष्य हमारे द्वारा लिए गए फैसलों का परिणाम होता हैं। 
आज मैं नयी रिलीज़ मूवी भाग जॉनी भाग देख रहा था।  मूवी के मुख्य किरदार जॉनी को कोई निर्णय लेने से पहले अच्छे और बुरे निर्णय लेने के कारण होने वाली घटनाओं को स्पष्ट दिखाने के बाद कहा की -
देखा जॉनी भविष्य हमारे दुआरा लिए गए निर्णयों का नतीजा होता हैं।
बस तभी से ये शब्द माथे में बार - बार गूंज रहे हैं।  मैंने आज इन शब्दों को अपने सबसे बेहतर फोटो के साथ फेसबुक और व्हाट्सऐप पर पोस्ट भी किया हैं। 
ये बिलकुल सत्य है की वर्तमान में लिए गए हमारे निर्णय ही हमारा बेहतर, निम्न, बैड या गुड डेज बनाते हैं। 
हॉलीवुड की मूवी फाइनल डेस्टिनेशन की सभी मूवीज में होने वाली घटनाओं के संकेत पहले से ही मिलने की बात पर ध्यानाकर्षण करती हैं। 
स्पाइडर मेन के अंतिम सीन में स्पाइडर मेन अपने मरते हुए दोस्त को कहता है की समय कितना ही कठिन और परिस्थितियां कितनी ही विपरीत क्यों न हो अच्छा या बुरा निर्णय लेना केवल हमने स्वंय ही लेना होता हैं। 
कई बार ऐसा लगता हैं की उपरोक्त तीनों को छूती हुयी जब भी कोई घटना मेरे जीवन में घटती है तब इसी प्रकार से कोई संकेत भी सामने आ जाता है और मेरे जीवन का मुख्य निर्णायक बन जाता है।  पिछले 6 - 7 साल से इसप्रकार के संकेत मुझे अनेक अवसरों पर सही निर्णय लेने की क्षमता देने का प्रयास करते हैं।  मैं इन संकेतो को घटना से पहले या बाद में कई बार महसूस कर चूका हूँ। 
ऐसा नहीं है की मुझे संकेतो को पहचानने की कला आती है बस जब घटनाएँ घटती हैं तब अपने आप आभास हो जाता है। मैंने वर्ष 2015 में अभी तक कई अहम निर्णय लिए है जिनके कुछ सकारात्मक नतीजे दिखाई देने शुरू हो चुके है और इस माह के जाते - जाते अपनी जिंदगी के सबसे अहम निर्णयों में से एक - दो जरूर लेने हैं। जिनके लिए मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।  
आज की मूवी ने शायद सही निर्णय लेकर राह चुनने का संकेत दे दिया है। 
नरेश लाम्बा ------------

Monday, October 19, 2015

भारत में सामाजिक कुरीतियाँ Social evils in Indian Society

मेरी डायरी
सामाजिक कुरुति या बुराई या रीतिरिवाजों का बिगड़ता स्वरूप
जब मेरा हुआ सामना …
18 अक्टूबर , 2015
मेरे एक रिश्तेदार के बेटे की शादी तय हो चुकी हैं और आज लड़की को अंगूठी पहनाने की रस्म थी।  मुझे भी उनकी तरफ से बुलावा भेजा गया था की अपनी पत्नी सहित हमने उनके साथ जाना है। किसी अंगूठी डालने की रस्म में जाने का यह मेरा पहला अवसर था।
इससे पहले मैं आगे लिखूं ये जानना जरुरी है की लड़की को अंगूठी पहनाने की रस्म ज्यादातर महिलाओं दुवारा घरेलु कार्यकर्म में पूरी की जाने वाली रस्म है।  जो रिश्ता पक्का होने के बाद सगाई (लड़के को अंगूठी पहनाने की रस्म ) से पहले होती है।
अब इसमें बुराई क्या है ?
खैर बुराइयों का तो कोई अंत नहीं है सब अपने अपने अनुसार इस रस्म को तोड़ मरोड़कर अपने हित और लालच साध रहे है इसके कुछ पहलुओं पर बात करनी होगी जैसे की ---
1 - लड़के वाले ज्यादा से ज्यादा संख्या में जाने की कोशिश करते है मैंने 80 - 100 लोगों तक जाते देखा है इससे न केवल लड़की वाले के ऊपर खाना और जगह के इंतजाम का खर्च और भार बढ़ता है बल्कि कई प्रकार के अनावश्यक लेनदेन का भार भी पड़ता है जिसका निचे उल्लेख किया है।
जब कुछ दिन बाद बारात में सभी को जाना ही हैं तो इस रस्म में अपने साथ अन्य रिश्तेदारों को क्यों ले जाया जाता है ?
2 - लड़की वाला सभी आने वालों को कपडे देगा चाहे वह स्त्री हो या पुरुष या बच्चा।  अगर 30 - 35 भी हो जाते है तो कपडे ही 15 - 20 हजार के पड़ते है। और अगर लड़का भी साथ है तो उसके कपडे ही सबके बराबर पड़ जाते है साथ ही एक अंगूठी का खर्च और बढ़ जाता है। इसके आलावा लड़के के माँ - बाप और भाई बहने इनके लिए स्पेशल कपडे और जेवरात आदि।
इसके बाद सगाई की रस्म होती है जिसमे लड़की वाले लड़के के घर जाते है और लड़के को अंगूठी पहनाते है और सभी के कपडे व मान तान के नाम पर सैकड़ो के लिए पैसे दिए जाते है।
बुराई यहाँ रस्मो रिवाजों में नहीं है बुरा इनको निभाने और करने वालों ने बना दिया है।
जब लड़के - लड़की ने एक दूसरे को अंगूठी ही पहना ही दी हैं तो आगे सगाई का तो कोई औचित्य ही नहीं बनता फिर कपडे व इतने सारे लेनदेन क्या ये सब ख़ुशी से रस्म पूरी करने आये है या इनको लेने ?
3 - यह एक बड़ी हास्यपद रिवाज है की सभी आये हुए लड़के वाले अंगूठी रस्म यानि अंगूठी पहनने के बाद लड़की को मान के नाम से कुछ रूपए देते है जिसका लड़की वाला दुगना पैसा उनको मान के नाम से देता है।  ये समझ नहीं आया की यह रिवाज क्यों और किस भावना से बनाई गई है की दुगना देगा ?
मेरा अनुभव तो एक बार बहुत ही भयानक हुआ था जिसपर गुस्सा और दुःख हुआ -----
मैं कुछ साल पहले ब्याज पर रूपए देता था ज्यादातर दुकानदार या छोटे काम धंधे वाले लोग मेरे पास आते थे। मेरे पड़ोस में एक हरिजन परिवार रहता हैं एक दिन वह और उसका भांजा मेरे पास आया।  उसने कहा की ये मेरे भांजा हैं इसको 5000 रूपए ब्याज पर चाहिए मैंने कहा की मैं केवल दुकानदारों को ही पैसा ब्याज पर देता हूँ उसने कहा की मैं इसकी गारंटी लेता हूँ ये परसों ही वापस कर देगा और जैसे की तुम चार महीने में ब्याज सहित 5 के 6 हजार वापस लेते हो ये दो दिन के ही एक हजार रूपए सहित 5 के 6 हजार लौटा देगा। 
मैंने उससे कहा की मैं नहीं दे पाउँगा लेकिन ऐसा क्या काम आ गया की दो दिन के एक हजार ब्याज देने पड़ रहे है।  तो जो उसने कारन बताया उससे मेरा दिमाग फटने को हो गया और मैंने उनको अपने ऑफिस से भगाया। 
उसने कहा की मेरे बेटे का रिश्ता पक्का हो गया है और कल लड़की को अंगूठी डालने जायेंगे और हम सब बड़ी मान यानि बाप, चाचा चाची व भाई आदि 5 - 5 हजार रूपए लड़की की झोली में डालेंगे जिसके बदले लड़की वाला सबको 10 - 10 हजार वापस देगा।  परसो ये 6000 तुम्हे देदेगा इसको 4000 बच जायेंगे। 
अब इसको क्या कहेंगे रस्म, रिवाज या स्वंय ही कुछ नाम दो ?
मैं बात कर रहा था एक रिश्तेदार के बेटे की अंगूठी रस्म की।  एक मंहगे रेस्चुरेन्ट में आयोजन किया गया था। फुल ऐसी, म्यूजिक, बढ़िया और कई प्रकार के व्यंजन की व्यवस्था थी।  हम (लड़के वाले) लगभग 35 - 40 लोग थे जिसमे 5-6 स्त्रियां 3-4 बच्चे थे।
हमें सुबह 11 बजे वहां पहुँचने के लिए बोला गया था और लगभग सभी असमय पर पहुँच गए थे।  जाते ही उनका नाश्ता - पानी शुरू हो गया था जिसमे गोलगप्पे, कई प्रकार के पकोड़े, सूप से लेकर खाने में कई प्रकार की सब्जियों सहित मिठाई वैगरह सब था।
कई रिश्तेदारों के साथ लड़का भी आया हुआ था। अंगूठी की रस्म लगभग 2.5 बजे हुयी हम लोग तीन - चार घंटे बस यु ही वहां पड़े रहे।  सभी पुरुष एक तरफ बैठे थे लड़के - लड़की ने कब अंगूठी पहना दी हमें पता भी नहीं चला। ऐसा लगा की पुरुष तो बेकार में केवल भीड़ के लिए बुलाये गए थे।  सब बैठे केवल टाइम पास कर रहे थे।  और बार - बार ये कह रहे थे पता नहीं कितनी देर और यहाँ बैठना पड़ेगा।
अंगूठी के बाद फोटो शुरू हो गए मंच पर लड़के - लड़की के लिए कुर्सियां लगी थी लगभग 1 घंटे से ज्यादा फोटो सेसन चला।  जिस दौरान लड़के की तरफ से आये लोगों ने लड़की को 100 -100 रूपए दिए मैंने भी दिए।  ये 100 रूपए देना लड़के के ताऊ ने तय किया था और सबको कह दिया था की हम लड़की को 100 - 100 रुपय देंगे।  मैंने सोचा चलो ज्यादा से ज्यादा अब लड़की वाला 200 रूपए ही मान - तान के नाम से देगा लेकिन हद तो जब हो गई -
- सबको 1100 - 1100 रुपय
- एक - एक चंडी का सिक्का
- एक- एक सफारी सूट
- मिठाई का डब्बा
- और जो लड़की के मामा आधी आये हुए थे उन्होंने 600 - 600 रूपए दिए
इसके आलावा
- लड़के के माँ - बाप को सोने का सिक्का
- लड़के को अंगूठी
- महंगा सूट
- सबी महिलाओं को महंगा सूट
दिया गया।  और सब ऐसे लाइन में लगकर ले रहे थे जैसे प्रसाद ले रहे हो।  सब आपस में चर्चा कर रहे थे कहा की मौज कर दी।
मैंने सरे खर्च का हिसाब लगाया जो लगभग 6-7 लाख के करीब पड़ रहा था।
सारा ढकोसला और नाटक की तरह चल रहा था मुझे कंही से भी ये प्रोग्राम शादी की रस्म नहीं लगी।  यह रस्म घर में महिलाओं दुआरा मनाई जाती है।  जब हम खाली बैठे थे तो ऐसा लग रहा था की किसी रेस्चुरेन्ट में खाना खाने आये हुए हैं।  कोई हंसी - ख़ुशी या महिलाओं के गीत नजर नहीं आ रहे थे बस अपनी - अपनी हैसियत का प्रदर्शन ही नजर आ रहा था।
लड़के का मुंह घमंड से ऊँचा उठा हुआ था और लड़की के भाव एक परेशान नाटक की कलाकार की तरह लग रहा था हो बस मंच पर एक कठपुतली की तरह खड़ी थी। जो भी आता 100 रूपए हाथ में देता और वह झुककर बस पैर छूती अब तो उसके चेहरे पर मुस्कान की बजाये परेशानी और थकान ज्यादा नजर आ रही थी।  मुझे लग रहा था बार - बार पैर छूने से शायद उसकी कमर में भी दर्द होने लगा था।
- ये सब क्या था ? मैं अभी तक नहीं समझ पाया हूँ।  जिससे भी बात की सब ने कहा की एहि ही रिवाज है। 
क्या ये रिवाज है ?
- या रिवाजों - रस्मों के नाम पर ढकोसला हो रहा हैं ?
मैंने कई साल संस्था का प्रतिनिधित्व करते हुए बेटी बचाओ आंदोलन चलाया और यह लड़का और इसकी माँ ने उनमे भाग भी लिए जिसमे हमारा फोकस ज्यादातर शादी के नाम से चल रही कुरूतियों पर ही रहा हैं लेकिन आज लगा की हम सफल नहीं हो पाये। 
कैसे दूर होंगी ये कुरुतियां ? समझ नहीं आ रहा।  जब नौजवान और पूरी तरह संपन्न युवक भी समझ नहीं पा रहे।  क्या होगा हमारे समाज का ?