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Tuesday, April 28, 2015

जैविक अदरक की खेती

Organic Ginger Farming
जैविक अदरक की खेती
नरेश लाम्बा, ग्राम शेखपुर, तहसील रामगढ़, जिला अलवर, राजस्थान
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- बुवाई का समय
अप्रैल-मई
- सफल पूरी होने का समय- 9 माह
चने व गेहूँ की कटाई के उपरांत खेत में क्या लगाया जाए? बस येही सवाल बार-बार मन में आ रहा था। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो सही प्रकार से मार्गदर्शन कर सके।
मैंने अपने आस-पास के कई किसानो से बात की, सबने केवल पारम्परिक फसलों जैसे- ग्वार व कपास के बारे में ही बताया। कहा- कपास की बुवाई अप्रैल के अंतिम सप्ताह से मई के पहले पखवाड़े तक की जा सकती है या
जुलाई तक लगा सकते है। ग्वार की बुवाई जून-जूलाई में  की जाती है। मैं कम से कम तीन फसल लेना चाहता था। पिछले साल मुझे पूसा संस्थान के द्वारा मूंग बोने की सलाह दी गई थी उन्होने कहा था कि अप्रैल के अंतिम सप्ताह से मई के प्रथम पखवाड़े तक गर्मियों में होने वाली मूंग की बुवाई की जाती है और यह 60-70 दिन में पूरी होती है इसके बाद दूबारा बरसाती मूंग जून-जूलाई में बोई जाती है। मैंने उनके सुझाव से मूंग की बुवाई की लेकिन कुछ अनुभव की कमी व अन्य कारणें के चलते सफलता नही मिली। मैने इसबार फिर से पूसा संस्थान व कर्षि काॅल सेंटर में फोन किया और उनसे अप्रैल-मई में बोई जाने वाली फसलों के बारे में जानकारी मांगी तो उन्हाने केवल मूंग के बारे में बताया।
मैने ईंटरनेट का सहारा लिया और कई दिन सर्च करने के बाद अदरक-हल्दी-मूंग व सफेद लोभिया के बारे में जानकारी मिली। इनमें अदरक नकदी फसल और अच्छा लाभ देने वाली फसल साबित हो रही थी। 
मैंने अदरक को अपने क्षेत्र में बोने के लिए सर्च किया तो किसी भी आकड़ों में रामगढ़ में अदरक की बुवाई नहीं मिली। हाँ पूरे भारत के अदरक के आकड़ों के अनूसार 1.8 प्रतिशत अदरक की खेती राजस्थान में मिली। 
प्राप्त जानकारी से उत्साहित होकर मैंने दो-चार क्यारी अदरक बुवाई कर जमीन परखने की सोची और अदरक के बीज के लिए नेट पर सर्च किया तो केरल, कनार्टक आदि में बीज मिले। इतनी दूर से यह संभव नहीं था। मैंने किसान काॅल सेंटर से संपर्क किया तो उन्होने भी असर्मथता जताई। मैंने पूसा में संर्पक किया तो उन्होने पंखा रोड़ जनकपूरी स्थित कम्पनी का फोन न0 दिया। उनसे संर्पक करने पर पता चला कि वे लोग अदरक पर काम नहीं करते। यानि कोई सरकारी मदद नहीं मिली।
बड़ी दिक्कत आ खड़ी हुई कि अब बीज कहाँ से मिले। एक बीज के दुकानदार ने बताया कि सब्जी मंडी में ट्राई करो अगर बिना धुली अदरक मिल जाती है तो उसमें से बीज के लायक कंद छाट लो। लेकिन अदरक बिना धुली हुई ही हो।
14.4.2015
मैंने नसीरपुर संब्जी मंडी में संर्पक किया लेकिन वहाँ बिना धूली अदरक नहीं मिली। इसके बाद मैं केशवपूर सब्जी मंडी गया और काफी ढूंढने पर एक दुकानदार के पास बोरी मिली और काफी छटाँई के बाद 10 कि0ग्रा0 अदरक मिली। उम्दा व जैविक बीज न मिलने के कारण मैनें इसबार स्वंय जैविक बीज तैयार करके अगले साल अदरक की बड़ी खेती करने की योजना बनाई। और केवल 10 कि0 ग्रा0 प्रकंद ही लगाने की तैयारी की। इससे मुझे जैविक बीज भी मिल जाएगा और हमारी भूमि व वातावरण में अदरक होगी या नहीं इसका भी अनुभव हो जाएगा।
15.4.2015
अदरक की छटाँई के बाद मैंने अदरक के लगभग 25 से 40 ग्रा0 के छोटे-छोटे टुकड़े किए और उनको जूट की बोरी पर बिझाकर उपर से सूती महीन चद्दर से दो दिन के लिए ढक दिया व पानी का छिड़काव किया ताकि अदरक सूखे ना और उसमें फुटाव आ जाए।

17.4.2015
अदरक का बीजोउपचार
अकरक के कंदो को देशी गाय के मूत्र में पानी मिलाकर लगभग तान-चार घंटे डुबाया गया। बाद में 10 से 12 घंटे छाया में सुखाया गया।
गौमूत्र के बीजोपचार करने के लाभ-
  • रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
  • भूमि जनित रोग जैसे फफूंद, फंगस, दीमक से बचाव होता है
  • चूहे प्रकंद को नुकसान नहीं पहुँचाते

बीजोपचार की विधियाँ
  • देशी गाय के मूत्र व पानी को मिलाकर में प्रकंद को दो-तीन घंटे उसमें डुबाए
  • देशी गाय की छाछ में थोड़ी सी असली हींग घोलकर प्रकंदो को डुबाए
  • अगर उपरोक्त चीजे उपलब्ध न हो तो करोसीन में अच्छी तरह भीगो कर छाया में सुखाएं

अदरक के लिए क्यारी तैयार करना
  • अदरक की फसल क्योंकि 9 माह में पूरी होती है इसलिए क्यारी इसप्रकार से बनाई जाए ताकि पानी देने, नलाई करने, खाद इत्यादि डालने में कोई कठिनाई न आए। 
  • अदरक गर्मियों में लगाई जाने वाली फसल है इसलिए क्यारी में नमी बनाए रखने की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई का प्रबंध आवश्य होना चाहिए।
  • सबसे पहले पिछली फसल के कटते ही खेत की हरो से जुताई कर देनी चाहिए और खेत को 10-12 दिन खुला छोड़ दें। इससे खरपतवार के बीज व पिछली फसल के कीटों द्वारा दिए अंडे जो मिट्टी में होते है तेज धूप लगने से नष्ट हो जाते है। 
  • पहली जुताई के बाद खेत में पानी देकर कलटिवेट्र से दुबारा जुताई करें।
  • गोबर या अन्य जैविक खाद भरपूर मात्रा में उपलब्ध है तो पूरे खेत में खाद डालकर पाटा लगाए ताकि खाद अच्छी तरह मिट्टी में मिल जाए और खेत की मिट्टी भी उल्ट-पुल्ट हो जाए।
  • अगर खाद कम हो तो जितनी उपलब्ध हो उनती खेत में डालें और पाटा लगाने के बाद मेज लगाकर खेत को एकसार कर लें। बाकि खाद बुवाई के समय केवल कंद के आस-पास डालें।
  • अदरक मेढ बनाकर बोई जाती है इसके लिए उचित तैयारी करें। पहले क्यारी में लगभग 2-3 ईंच गहरी नाली बनाएं और क्यारी में से पत्थर, सीसे व प्लास्टिक आदि निकाल लें।
  • नाली की दूरी एक दुसरे से कम से कम 16 ईंच रखें। इससे नलाई-गुड़ाई व खाद-पानी के लिए पर्याप्त जगह रहेगी। पौधे के फैलने पर उनमें हवा व धूप अच्छी मिलेगी तथा कीटनाशकों के छिड़काव में आसानी रहती है।
  • संभव हो सकें तो पूरी क्यारी में अन्यथा केवल नालियों में (जहाँ प्रकंद लगाने है) नीम की खल का चुरा डालें। यह चुरा जैविक कीटनाशक होता है। जो भूमि में लगाए वाली कंदीय फसलों को भूमि के कई प्रकार के कीड़ो व प्रकंद को बिमारियों से बचाता है। बाद में गलने के बाद बेहतर खाद का
    काम करता है। नीम की खल व चुरा बाजार में आसानी से उपलब्द है। लगातार ईस्तेमाल के लिए नीम की जमीन पर पककर पड़ी निम्बोली एकत्र करके धोकर-सुखाकर उसकी खल व नीम का तेल निकलवा सकते है या निम्बोली कूटकर सुखाकर खेत में डाल दें।
  • नीम की खल डालने के बाद नालियों में अच्छी क्वालिटि की जैविक खाद डालें।

 अदरक के बीज की बुवाई
  • इस तरह क्यारी तैयार करने के बाद अदरक के प्रकंद लगाए। कमजोर व रोगी प्रकंदो को निकाल दें।
    केवल तंदुरुस्त प्रकंद ले जिनमें कम से कम दो या तीन आँखे स्पष्ट दिखाई दे रही हो। कंद का वजन 25 से 40 ग्रा0 रखें।
  • नाली से नाली की दूरी लगभग 16 से 20 ईंच रखें प्रकंद से प्रकंद की दूरी 6 से 8 ईंच रख सकते है।
  • ध्यान रखें कि प्रकंद की आँखें उपर की ओर रहें।


प्रकंदो को ढकना या मेढ बनाकर ढकना या मिट्टी चढ़ाना 
  • प्रकंद लगाने के बाद दोनो प्रकंदो के ओर से मिट्टी चढ़ाकर मेढ बना देते है। जिससे प्रकंद के उपर 4 से
    6 ईंच मिट्टी चढ़ जाती है।
  • इसप्रकार से खाद की कम मात्रा उपलब्ध होने पर भी प्रकंद को कुछ समय के लिए भरपूर खाद मिल जाती है और पौधा तंदुरुस्त उगता है। बाकि खाद नलाई-गुड़ाई के समय डालें।




पानी देना
  • नमी वाली भूमि में प्रकंद लगाने के एक-दो दिन पश्चात व सूखी भूमि में प्रकंद लगाते ही पानी दिया जाना चाहिए। अन्यथा प्रकंद सूखने की आशंका रहती है।
  • पानी क्यारी में अच्छी तरह से भर दें। ताकि प्रकंद तक कई दिनों तक नमी बनी रहे और नीम की खल भी नम हो जाए।
  • मौसम के अनूसार नमी बनाए रखने के लिए 5 से 15 दिन के अंतराल पर हल्का पानी लगाते रहना होगा।
  • ध्यान रखें पानी ज्यादा दिनों तक क्यारी में न भरा रहे। इससे प्रकंद गलने से बचेगा।


पलवार डालना
बुवाई की अंतिम क्रिया क्यारी में पलवार डालना है। क्योंकि अदरक को नम व गर्मउमस वाला वातावरण चाहिए होता है। इसके लिए पूरी क्यारी में पलवार डाला जाता है।
  • पलवार देने से बीज में अंकुरण अच्छा होता है।
  • पलवार से खरपतवार के बीजों में अंकुरण नहीं होगा और बीज जमीन में ही गल जाऐंगें जिससे खरपतवार रुकेगा।
  • जमीन में पड़ी सूखी पत्तियाँ आदि गल जाऐंगी जिससे खाद में वद्धि होती है।
  • नमी बनी रहने व तेज धूप नीचे न जाने से जमीन में जिवाणुओं की संख्या बढेगी और जिवाणु नष्ट नहीं होगें।
  • जिवाणु खाद उपयोग करने पर कई फसलों में पलवार बहुत कारगर होती है।
  • पूरी क्यारी में 3-4 ईंच मोटी पत्तियों की या फूंस आदि की पलवार बिझा दें।
  • सड़ा-गला भूसा यदि उपलब्ध हो सकें तो एक महिन परत क्यारी में लगा दें। क्योंकि अदरक की फसल 9 महिने की होती है। यह भूसा नमी बनाए रखने के साथ-साथ गलकर अच्छी खाद भी बन जाएगा।
जारी ……… 
Naresh Lamba