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Saturday, May 2, 2015

ORGANIC MANURE FROM KITCHEN WASTE

ORGANIC MANURE FROM KITCHEN WASTE

रसोई घर से निकले सब्जियों के पत्तें / छिलके / चाय पत्ती/ सूखी रोटी / आटा / बेसन आदि से घर में ही बनाये बेहतर जैविक खाद। 
पर्यावरण क्षेत्र से जुड़ी एक संस्था के सर्वे के अनुसार दिल्ली और अन्य भारतीय आम शहरी औसत परिवार की रसोई से 800 ग्राम से 1 किलो 50 ग्राम हरा कचरा फल एवं सब्जियों के छिलके, चाय पत्ती और बचे हुए सूखे आटे के रूप में निकलता है। यह अन्य कचरे के साथ मिलकर कूड़ाघर में जाता है या अन्य जगह फेंक दिया जाता है जो बेकार है और बदबू का भी कारण बनता है।
इस खुले में फेंके गए हरे कचरे पर गाय व अन्य पशु आकर्षित होते है। सड़ने पर यह कचरा जहरीला हो जाता है और अक्सर पॉलिथीन में कचरा डेल जाने से पशु कचरे को पॉलिथीन समेत निगल जाते है जिससे उनमे कई तरह की संक्रमक बीमारिया हो जाती है और पशु मर जाते है।  शहरो में सबसे ज्यादा गाय इससे प्रभावित हो रही है। 
अगर शहरी लोगो में थोड़ी सी जागरूकता आ जाये तो केवल दो से पांच मिनट्स दिन में अतिरिक्त देकर न केवल इन गायों को बचा सकते है साथ ही घर पर ही बेहद उम्दा किस्म की 5-6 जैविक खाद भी हर महीने बना सकते हैं।  जो हमारे किचन गार्डन के लिए या अन्य पेड़ पौधों के लिए काफी उपयोगी होती हैं। 
 बाजार में उपलब्ध जैविक खाद काफी महंगी होती है। घरों में आने वाले माली 20 रू की 50 ग्राम खाद देते हैं। इसप्रकार खाद 400 रू किलो पड़ती हैं। 
घर में रसोई से निकलने वाले हरे कचरे से हम 5-6 खाद प्रति महीने आसानी से बना सकते है। 
खाद बनाने की विधि :-
1- एक माध्यम आकार और क्षमता का मिटटी का ढक्कन सहित घड़ा ले और उसको छाया में रख ले। 
2- सब्जियों के छिलके अलग कर ले।

3- मोटे छिलके या साबुत गली सब्जी को काटकर बारीक़ कर ले।

4- कटे हुए छिलकों को मटके में भर दें।
5- जब भी पत्तें डाले डंडे से अच्छी तरह मिला दे। बाद में मटके को छाया में ढककर रख दे। हफ्ते में एक बार मिश्रण को आपस में मिलाते रहे। 
6- इसप्रकार से उम्दा किस्म की जैविक खाद 25-30 दिनों में तैयार हो जाती हैं। 
खाद की और ज्यादा गुणवत्ता बढ़ाने व जल्द तैयार करने के लिए निम्न तरीका अपनाया जा सकता हैं। 
1- सबसे पहले पत्तों / छिलकों को बारीक़ कर लें। 

2- इसके बाद इसमें पुरानी गोबर या अन्य सड़ी हुयी थोड़ी खाद मिला दे।  यह खाद पत्तों को जल्द गलाने में सहायक बनती हैं।  जैसे दही ज़माने के लिए जामन की आवस्यकता होती हैं उसी प्रकार नयी खाद बनाने के लिए उसमे थोड़ी पुरानी खाद डालनी चाहिए।  
3- इसमें हम थोड़ा बेसन या अन्य बचा हुआ सूखा आटा भी मिला सकते हैं इससे खाद भी जल्द गलेगी और पौष्टिकता भी बढ़ेगी। 
4- इस पुरे मिश्रण को अच्छी तरह मिला ले। 
5- सारे मिश्रण को मटके में भर दे। 

5- खाद की गुणवत्ता के साथ - साथ उसमें पौधे के लिए रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व कीटनाशक क्षमता भी पैदा करने के लिए नीम, धतूरे व आक या अमरुद के पत्तो को मिक्सी में पीसकर या कूटकर चटनी बना ले। अगर सभी उपलबध न हो सके तो इनमे से जो मिल जाये उसी को कूट पीस ले।  इस चटनी की थोड़ी मात्रा मटके में डाल दे। धयान रखे की चटनी में पानी ज्यादा न हो। 
6- मिश्रण में पुराने अख़बार को बारीक़ टुकड़े करके डाल दे। अख़बार जल्द गलते है साथ ही मिश्रण के फालतू पानी को भी सोख लेते हैं।  बाद में भी अगर आपको लगे की पानी ज्यादा है तो अख़बार के टुकड़े इसमें डाल दे। 
7- देशी गाय के गोमूत्र में 36 प्रकार के गुण पाये जाते हैं जिनमे जीवाणु, कीटनाशक व खाद की पौष्टिकता आदि बढ़ाने के गुण होते हैं। अगर देशी गाय का मूत्र मिल जाये तो थोड़ा इस मिश्रण में मिला दे। 
8- सब मिलाने के बाद मटके को ढक्कर छाया में रख दे।  हफ्ते में एक बार डंडे से मिलते रहे। अगर गीलापन ज्यादा लगे तो अख़बार के टुकड़े डाल दे और एक दो दिन मटके को खुला छोड़ दे। 
9- इसप्रकार 25-30 दिनों में बेहद उम्दा, पौष्टिक, कीटनाशक सहित जैविक खाद बनकर तैयार हो जाती हैं। 
ये बिलकुल आसान तरीका है जैविक खाद बनाने का। यह खाद सब्जियों, फूलों व घरेलु पौधों के लिए बहुत लाभकारी है साथ ही बड़े पैमाने पर इसको तैयार करके खेती के इस्तेमाल में भी लाया जा सकता है।  लेखक नरेश लाम्बा दुवारा हर महीने 30-35 मटको में खाद बनायीं जा रही है।  जिसका उपयोग खेती में सफलता पूर्वक किया जा रहा है।
इस खाद में नाइट्रोजन, कार्बन व ऑक्सीजन सहित वे सारे तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं जो किसी भी पौधे की
सम्पूर्ण आवश्यकता को पूरी करते है।  जमीन में इस खाद के डालने से कुछ ही दिनों में करोडो जीवाणु जमीन में पैदा हो जाते है जो प्राकृतिक खाद के निर्माण के साथ - साथ जमीन में पौधों के लिए हानिकारक कीड़ो को भी नस्ट कर देते हैं। ये जीवाणु पौधों की जड़ो तक ऑक्सीजन पहुचने का भी माध्यम बनते हैं। 

Naresh Lamba
President
Social Development Welfare Society (Regd.NGO)
Contact: 9891550792
lamba2512@gmail.com








Tuesday, April 28, 2015

जैविक अदरक की खेती

Organic Ginger Farming
जैविक अदरक की खेती
नरेश लाम्बा, ग्राम शेखपुर, तहसील रामगढ़, जिला अलवर, राजस्थान
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- बुवाई का समय
अप्रैल-मई
- सफल पूरी होने का समय- 9 माह
चने व गेहूँ की कटाई के उपरांत खेत में क्या लगाया जाए? बस येही सवाल बार-बार मन में आ रहा था। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो सही प्रकार से मार्गदर्शन कर सके।
मैंने अपने आस-पास के कई किसानो से बात की, सबने केवल पारम्परिक फसलों जैसे- ग्वार व कपास के बारे में ही बताया। कहा- कपास की बुवाई अप्रैल के अंतिम सप्ताह से मई के पहले पखवाड़े तक की जा सकती है या
जुलाई तक लगा सकते है। ग्वार की बुवाई जून-जूलाई में  की जाती है। मैं कम से कम तीन फसल लेना चाहता था। पिछले साल मुझे पूसा संस्थान के द्वारा मूंग बोने की सलाह दी गई थी उन्होने कहा था कि अप्रैल के अंतिम सप्ताह से मई के प्रथम पखवाड़े तक गर्मियों में होने वाली मूंग की बुवाई की जाती है और यह 60-70 दिन में पूरी होती है इसके बाद दूबारा बरसाती मूंग जून-जूलाई में बोई जाती है। मैंने उनके सुझाव से मूंग की बुवाई की लेकिन कुछ अनुभव की कमी व अन्य कारणें के चलते सफलता नही मिली। मैने इसबार फिर से पूसा संस्थान व कर्षि काॅल सेंटर में फोन किया और उनसे अप्रैल-मई में बोई जाने वाली फसलों के बारे में जानकारी मांगी तो उन्हाने केवल मूंग के बारे में बताया।
मैने ईंटरनेट का सहारा लिया और कई दिन सर्च करने के बाद अदरक-हल्दी-मूंग व सफेद लोभिया के बारे में जानकारी मिली। इनमें अदरक नकदी फसल और अच्छा लाभ देने वाली फसल साबित हो रही थी। 
मैंने अदरक को अपने क्षेत्र में बोने के लिए सर्च किया तो किसी भी आकड़ों में रामगढ़ में अदरक की बुवाई नहीं मिली। हाँ पूरे भारत के अदरक के आकड़ों के अनूसार 1.8 प्रतिशत अदरक की खेती राजस्थान में मिली। 
प्राप्त जानकारी से उत्साहित होकर मैंने दो-चार क्यारी अदरक बुवाई कर जमीन परखने की सोची और अदरक के बीज के लिए नेट पर सर्च किया तो केरल, कनार्टक आदि में बीज मिले। इतनी दूर से यह संभव नहीं था। मैंने किसान काॅल सेंटर से संपर्क किया तो उन्होने भी असर्मथता जताई। मैंने पूसा में संर्पक किया तो उन्होने पंखा रोड़ जनकपूरी स्थित कम्पनी का फोन न0 दिया। उनसे संर्पक करने पर पता चला कि वे लोग अदरक पर काम नहीं करते। यानि कोई सरकारी मदद नहीं मिली।
बड़ी दिक्कत आ खड़ी हुई कि अब बीज कहाँ से मिले। एक बीज के दुकानदार ने बताया कि सब्जी मंडी में ट्राई करो अगर बिना धुली अदरक मिल जाती है तो उसमें से बीज के लायक कंद छाट लो। लेकिन अदरक बिना धुली हुई ही हो।
14.4.2015
मैंने नसीरपुर संब्जी मंडी में संर्पक किया लेकिन वहाँ बिना धूली अदरक नहीं मिली। इसके बाद मैं केशवपूर सब्जी मंडी गया और काफी ढूंढने पर एक दुकानदार के पास बोरी मिली और काफी छटाँई के बाद 10 कि0ग्रा0 अदरक मिली। उम्दा व जैविक बीज न मिलने के कारण मैनें इसबार स्वंय जैविक बीज तैयार करके अगले साल अदरक की बड़ी खेती करने की योजना बनाई। और केवल 10 कि0 ग्रा0 प्रकंद ही लगाने की तैयारी की। इससे मुझे जैविक बीज भी मिल जाएगा और हमारी भूमि व वातावरण में अदरक होगी या नहीं इसका भी अनुभव हो जाएगा।
15.4.2015
अदरक की छटाँई के बाद मैंने अदरक के लगभग 25 से 40 ग्रा0 के छोटे-छोटे टुकड़े किए और उनको जूट की बोरी पर बिझाकर उपर से सूती महीन चद्दर से दो दिन के लिए ढक दिया व पानी का छिड़काव किया ताकि अदरक सूखे ना और उसमें फुटाव आ जाए।

17.4.2015
अदरक का बीजोउपचार
अकरक के कंदो को देशी गाय के मूत्र में पानी मिलाकर लगभग तान-चार घंटे डुबाया गया। बाद में 10 से 12 घंटे छाया में सुखाया गया।
गौमूत्र के बीजोपचार करने के लाभ-
  • रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
  • भूमि जनित रोग जैसे फफूंद, फंगस, दीमक से बचाव होता है
  • चूहे प्रकंद को नुकसान नहीं पहुँचाते

बीजोपचार की विधियाँ
  • देशी गाय के मूत्र व पानी को मिलाकर में प्रकंद को दो-तीन घंटे उसमें डुबाए
  • देशी गाय की छाछ में थोड़ी सी असली हींग घोलकर प्रकंदो को डुबाए
  • अगर उपरोक्त चीजे उपलब्ध न हो तो करोसीन में अच्छी तरह भीगो कर छाया में सुखाएं

अदरक के लिए क्यारी तैयार करना
  • अदरक की फसल क्योंकि 9 माह में पूरी होती है इसलिए क्यारी इसप्रकार से बनाई जाए ताकि पानी देने, नलाई करने, खाद इत्यादि डालने में कोई कठिनाई न आए। 
  • अदरक गर्मियों में लगाई जाने वाली फसल है इसलिए क्यारी में नमी बनाए रखने की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई का प्रबंध आवश्य होना चाहिए।
  • सबसे पहले पिछली फसल के कटते ही खेत की हरो से जुताई कर देनी चाहिए और खेत को 10-12 दिन खुला छोड़ दें। इससे खरपतवार के बीज व पिछली फसल के कीटों द्वारा दिए अंडे जो मिट्टी में होते है तेज धूप लगने से नष्ट हो जाते है। 
  • पहली जुताई के बाद खेत में पानी देकर कलटिवेट्र से दुबारा जुताई करें।
  • गोबर या अन्य जैविक खाद भरपूर मात्रा में उपलब्ध है तो पूरे खेत में खाद डालकर पाटा लगाए ताकि खाद अच्छी तरह मिट्टी में मिल जाए और खेत की मिट्टी भी उल्ट-पुल्ट हो जाए।
  • अगर खाद कम हो तो जितनी उपलब्ध हो उनती खेत में डालें और पाटा लगाने के बाद मेज लगाकर खेत को एकसार कर लें। बाकि खाद बुवाई के समय केवल कंद के आस-पास डालें।
  • अदरक मेढ बनाकर बोई जाती है इसके लिए उचित तैयारी करें। पहले क्यारी में लगभग 2-3 ईंच गहरी नाली बनाएं और क्यारी में से पत्थर, सीसे व प्लास्टिक आदि निकाल लें।
  • नाली की दूरी एक दुसरे से कम से कम 16 ईंच रखें। इससे नलाई-गुड़ाई व खाद-पानी के लिए पर्याप्त जगह रहेगी। पौधे के फैलने पर उनमें हवा व धूप अच्छी मिलेगी तथा कीटनाशकों के छिड़काव में आसानी रहती है।
  • संभव हो सकें तो पूरी क्यारी में अन्यथा केवल नालियों में (जहाँ प्रकंद लगाने है) नीम की खल का चुरा डालें। यह चुरा जैविक कीटनाशक होता है। जो भूमि में लगाए वाली कंदीय फसलों को भूमि के कई प्रकार के कीड़ो व प्रकंद को बिमारियों से बचाता है। बाद में गलने के बाद बेहतर खाद का
    काम करता है। नीम की खल व चुरा बाजार में आसानी से उपलब्द है। लगातार ईस्तेमाल के लिए नीम की जमीन पर पककर पड़ी निम्बोली एकत्र करके धोकर-सुखाकर उसकी खल व नीम का तेल निकलवा सकते है या निम्बोली कूटकर सुखाकर खेत में डाल दें।
  • नीम की खल डालने के बाद नालियों में अच्छी क्वालिटि की जैविक खाद डालें।

 अदरक के बीज की बुवाई
  • इस तरह क्यारी तैयार करने के बाद अदरक के प्रकंद लगाए। कमजोर व रोगी प्रकंदो को निकाल दें।
    केवल तंदुरुस्त प्रकंद ले जिनमें कम से कम दो या तीन आँखे स्पष्ट दिखाई दे रही हो। कंद का वजन 25 से 40 ग्रा0 रखें।
  • नाली से नाली की दूरी लगभग 16 से 20 ईंच रखें प्रकंद से प्रकंद की दूरी 6 से 8 ईंच रख सकते है।
  • ध्यान रखें कि प्रकंद की आँखें उपर की ओर रहें।


प्रकंदो को ढकना या मेढ बनाकर ढकना या मिट्टी चढ़ाना 
  • प्रकंद लगाने के बाद दोनो प्रकंदो के ओर से मिट्टी चढ़ाकर मेढ बना देते है। जिससे प्रकंद के उपर 4 से
    6 ईंच मिट्टी चढ़ जाती है।
  • इसप्रकार से खाद की कम मात्रा उपलब्ध होने पर भी प्रकंद को कुछ समय के लिए भरपूर खाद मिल जाती है और पौधा तंदुरुस्त उगता है। बाकि खाद नलाई-गुड़ाई के समय डालें।




पानी देना
  • नमी वाली भूमि में प्रकंद लगाने के एक-दो दिन पश्चात व सूखी भूमि में प्रकंद लगाते ही पानी दिया जाना चाहिए। अन्यथा प्रकंद सूखने की आशंका रहती है।
  • पानी क्यारी में अच्छी तरह से भर दें। ताकि प्रकंद तक कई दिनों तक नमी बनी रहे और नीम की खल भी नम हो जाए।
  • मौसम के अनूसार नमी बनाए रखने के लिए 5 से 15 दिन के अंतराल पर हल्का पानी लगाते रहना होगा।
  • ध्यान रखें पानी ज्यादा दिनों तक क्यारी में न भरा रहे। इससे प्रकंद गलने से बचेगा।


पलवार डालना
बुवाई की अंतिम क्रिया क्यारी में पलवार डालना है। क्योंकि अदरक को नम व गर्मउमस वाला वातावरण चाहिए होता है। इसके लिए पूरी क्यारी में पलवार डाला जाता है।
  • पलवार देने से बीज में अंकुरण अच्छा होता है।
  • पलवार से खरपतवार के बीजों में अंकुरण नहीं होगा और बीज जमीन में ही गल जाऐंगें जिससे खरपतवार रुकेगा।
  • जमीन में पड़ी सूखी पत्तियाँ आदि गल जाऐंगी जिससे खाद में वद्धि होती है।
  • नमी बनी रहने व तेज धूप नीचे न जाने से जमीन में जिवाणुओं की संख्या बढेगी और जिवाणु नष्ट नहीं होगें।
  • जिवाणु खाद उपयोग करने पर कई फसलों में पलवार बहुत कारगर होती है।
  • पूरी क्यारी में 3-4 ईंच मोटी पत्तियों की या फूंस आदि की पलवार बिझा दें।
  • सड़ा-गला भूसा यदि उपलब्ध हो सकें तो एक महिन परत क्यारी में लगा दें। क्योंकि अदरक की फसल 9 महिने की होती है। यह भूसा नमी बनाए रखने के साथ-साथ गलकर अच्छी खाद भी बन जाएगा।
जारी ……… 
Naresh Lamba

"The Gift of Good Land"

Organic farming

"An organic farm, properly speaking, is not one that uses certain methods and substances and avoids others; it is a farm whose structure is formed in imitation of the structure of a natural system that has the integrity, the independence and the benign dependence of an organism"

रासायनिक खाद व कीटनाशक युक्त भोजन से बढ़ रही है भयानक बीमारियां

रासायनिक खाद व कीटनाशक युक्त भोजन से बढ़ रही है भयानक बीमारियां
रासायनिक खाद व कीटनाशक के धड़ाधड प्रयोग ने हवा, पानी व मिंट्टी को इतना जहरीला बना दिया है कि आबादी का काफी हिस्सा शारीरिक, मानसिक व सेक्स के पक्ष से कमजोर हो रहा है। इसके साथ ही युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आ गई है। संसार में पहले बीमारियां पैदा होती हैं, फिर इन बीमारियों के इलाज के बहाने लोगों की आर्थिक लूट की जाती है। देष में वैज्ञानिक खेती के नाम पर बरती जाने वाली खाद व कीटनाशक ने मनुष्य के स्वास्थ्य पर इस कदर असर किया है कि अब लोगों में ब्लड प्रेशर, शुगर, चमड़ी रोग, एचआइवी, हैपेटाइटिस बी-सी व कैंसर की बीमारियों में लगातार वृद्धि हो रही है। पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या लगातार कम हो रही है, सेक्स के तौर पर कमजोरी आ रही है और महिलाओं में बांझपन लगातार बढ़ रहा है। इन बीमारियों के इलाज में देष की जनता लगातार आर्थिक तौर पर कंगाल हो रही है।
फसलों पर छिड़के जाने वाले कीटनाशकों के अंश फल, सब्जी और अनाजों के जरिये हम तक पहुंचते हैं. 
खेतों में फल, सब्जियों और अनाजों को कीटों से बचाने वाले रसायनों के छिड़काव से जुड़ा है. जिस हरित क्रांति ने अनाज के लिए विदेशों पर हमारी निर्भरता खत्म की है, उसका विपरीत प्रभाव यह है कि हमारी जमीन कीटनाशकों के जहर में डूब चुकी है. हालात यह हैं कि फैक्ट्रियों और खेतों के जरिए हम तक आया यह विष हमारे डीएनए में घुस गया है और लगातार चेतावनियां आ रही हैं कि इनका असर भावी पीढ़ी विकलांग बना सकता है.
Naresh Lamba

Health Benefits Of Organic Food

Health Benefits Of Organic Food

Organic food is ‘certified’ food, which is produced in accordance with quality production standards. It is grown on organic farms and vigorously monitored by the officials of a certification body, during the production. Unlike natural food, organic food stuffs are generally grown without the use of pesticides and chemical fertilizers. They are often labeled to differentiate them from the natural ones, because both are similar in terms of color, size and shape. Organic food not only involves fruits, vegetables and grains, but also the products derived from livestock. Initially, organic foods were grown in small family-run farms. This restricted their availability to a great extent. The organic foods were available only in small stores and farmers' markets. With the increasing demand and the advancement in the field of agriculture, organic foods are now available in many countries around the world. Pricey though, more and more people are switching to organic food. The superior taste of organic food, perhaps, motivates people to consume them. Apart from the fact that it tastes better than the natural food, organic food has certain benefits on the overall health of the people as well. Check out the article to know all about the health benefits of organic food.

Organic Food Advantages
  • Studies suggest that organic food contains 10-50% higher amount of phyto- nutrients as compared to the conventional food. Antioxidants are present in abundance in organic food produce than in their conventional counterpart. They are very essential as they help in the prevention of cancer.
  • Reduced risk of health problems is often associated with the consumption of organic food.
  • Officials from the certification bodies visit the farm or plant, where the organic food stuffs are processed, to check whether the food is produced in accordance with the production standards set by them or not. This makes the organic food even more ‘quality-based’ over its natural foods counterpart.
  • Since organic foods generally carry labels, you will be able to differentiate them from others and choose accordingly. Be careful before choosing organic food. You do not want to end up buying a Genetically Modified (GM) food, because its implication on human health is still being studied.
  • Organic food stays longer, without decaying, than natural food. And to add on, they are safe for babies and children, as well.
  • Since organic foods are treated with manure, they are considered better than natural food, which are treated with pesticides, herbicides and chemical fertilizers, when they are grown in farms. Studies have shown that pesticide exposure results in neurological problems, often resulting in autism and ADHD.
  • Organic food contains phenolic compounds, which protects our heart from cardiovascular diseases and reduces the risk of cancer. Organic foods are regarded healthy because of their higher nutritional value and presence of essential fatty acids.
  • The farm animals in an organic farming are reared without the use of growth hormones. Farmers ensure that the animals are given a healthy and balanced diet. This makes such animal products tastier and healthier to eat, as compared to those produced in the conventional way.
  • Antibiotics are widely used in dairy farms for increased resistance of animals, thereby leaving antibiotic residues in the dairy milk and milk products. Animals that are organically raised will not contain antibiotic residues in their products. The latter is safer because continual exposure to antibiotics can disrupt your helpful gut flora, leaving you vulnerable to many diseases.
  • Some of the other benefits that are gained by eating organic food is the increased immune system and better weight management. Recent studies have found that they are rich in vitamins and minerals, especially iron and zinc.
  • They are also known to be environmental-friendly and thus help in saving wildlife, by reducing water pollution and conserving the environment.
Disadvantages Of Organic Foods
  • Though organic foods are twice as expensive as their conventional counterparts, studies have not yet confirmed their nutritional benefits.
  • Researches claim them to be free from pesticide exposure and nothing more. A recent research showed that some of the benefits and harms of organic foods that are listed in popular portals are not based on comprehensive tests.
  • Also when shopping for fruits and vegetables, make sure to buy them when they are in season, in order to get the freshest produce available.
Listed above were the advantages and other facts to be noted when shopping organic produce.
The major take away would be to never confuse organic produce with nutritious food, but yes, you can definitely rely on it being pesticide-free.








             
                                                                                                     Naresh Lamba

Monday, September 17, 2012

Bhagidari, Govt. of NCT of Delhi भूख मुक्त दिल्ली अभियान


Bhagidari, Govt. of NCT of Delhi

भूख मुक्त दिल्ली अभियान के तहत इंटर ग्लोब होटल्स एन एच ८ दुवारा दिल्ली सरकार कि भागीदारी से आपकी रसोई योजना के दुवारा महिपाल पुर रेड लाइट पर दिल्ली के 13 वे संटर का माननीया मिख्य मंत्री जी दुवारा  उदघाटन किया. इस सेंटर पर हर रोज दोपहर 12 .00 बजे से 1.00 बजे तक निरक्षित लोगो को मुफ्त खाना दिया जायेगा. 






इस अवसर पर मुख्य मंत्री जी व श्रीमती किरण वालिया जी ने गरीब बच्चो को आपने हाथो से खाना खिलाया. भागीदारी कोर कमेटी के  सदस्य श्री नरेश लाम्बा जी ने गरीब बच्चो  (महिपाल पुर चौराहे पर निराश्रित बच्चो तथा निम्बू मिर्च इत्यादि बेचने वाले बच्चे) के  साथ मुख्य मंत्री जी का फूलों के गुलदस्ते से स्वागत किया. 





मुख्य मंत्री जी उन बच्चो से पूछा के वे स्कूल जाते हैं या नहीं तो बच्चो ने स्कूल का ज्ञान होने से ही मना किया. मुख्य मंत्री जी उनके साथ अन्य  निराश्रित ओरतो से कहा कि इन बच्चो को स्कूल भेजा करो दिल्ली में स्कूल में मुफ्त पढाई के साथ साथ इन बच्चो के लिए खाना और अन्य सुविधाए भी दी जाती हैं.





भागीदारी अधीक्षक श्री मुजफ्फर इम्तियाज साहब का क्षेत्र में पधारने के लिए श्री लाम्बा जी ने और  गाँव शाहाबाद मोहम्मद पुर  कि तरफ से श्री ओम प्रकाश सोलंकी जी मुख्यमंत्री जी का स्वागत किया.














main persons:
1. Hon'ble CM Smt Shiela Dixit Ji
2. Proff. Kiran Walia ji, Hon'ble minister
3. Hon'ble Dy. Commissioner Shri Vikas Anand
4. Shri Alok Sharma Hon'ble SDM Vasant Vihar
5. Shri Krishna Mohan Hon'ble SDM Najafgarh
6. Shri Kulanand Joshi Hon'ble Adl. Sec. CM bhagidari
7. Shri Manoj Jain Hon'ble Dy. Eec. to CM Bhagidari
8. Shri Mujjaffar Imtiaz Hon'ble Supdt. Bhagidari
9. Shri Naresh Lamba, Member core committee, Bhagidari Distt. S/W