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Monday, October 19, 2015

भारत में सामाजिक कुरीतियाँ Social evils in Indian Society

मेरी डायरी
सामाजिक कुरुति या बुराई या रीतिरिवाजों का बिगड़ता स्वरूप
जब मेरा हुआ सामना …
18 अक्टूबर , 2015
मेरे एक रिश्तेदार के बेटे की शादी तय हो चुकी हैं और आज लड़की को अंगूठी पहनाने की रस्म थी।  मुझे भी उनकी तरफ से बुलावा भेजा गया था की अपनी पत्नी सहित हमने उनके साथ जाना है। किसी अंगूठी डालने की रस्म में जाने का यह मेरा पहला अवसर था।
इससे पहले मैं आगे लिखूं ये जानना जरुरी है की लड़की को अंगूठी पहनाने की रस्म ज्यादातर महिलाओं दुवारा घरेलु कार्यकर्म में पूरी की जाने वाली रस्म है।  जो रिश्ता पक्का होने के बाद सगाई (लड़के को अंगूठी पहनाने की रस्म ) से पहले होती है।
अब इसमें बुराई क्या है ?
खैर बुराइयों का तो कोई अंत नहीं है सब अपने अपने अनुसार इस रस्म को तोड़ मरोड़कर अपने हित और लालच साध रहे है इसके कुछ पहलुओं पर बात करनी होगी जैसे की ---
1 - लड़के वाले ज्यादा से ज्यादा संख्या में जाने की कोशिश करते है मैंने 80 - 100 लोगों तक जाते देखा है इससे न केवल लड़की वाले के ऊपर खाना और जगह के इंतजाम का खर्च और भार बढ़ता है बल्कि कई प्रकार के अनावश्यक लेनदेन का भार भी पड़ता है जिसका निचे उल्लेख किया है।
जब कुछ दिन बाद बारात में सभी को जाना ही हैं तो इस रस्म में अपने साथ अन्य रिश्तेदारों को क्यों ले जाया जाता है ?
2 - लड़की वाला सभी आने वालों को कपडे देगा चाहे वह स्त्री हो या पुरुष या बच्चा।  अगर 30 - 35 भी हो जाते है तो कपडे ही 15 - 20 हजार के पड़ते है। और अगर लड़का भी साथ है तो उसके कपडे ही सबके बराबर पड़ जाते है साथ ही एक अंगूठी का खर्च और बढ़ जाता है। इसके आलावा लड़के के माँ - बाप और भाई बहने इनके लिए स्पेशल कपडे और जेवरात आदि।
इसके बाद सगाई की रस्म होती है जिसमे लड़की वाले लड़के के घर जाते है और लड़के को अंगूठी पहनाते है और सभी के कपडे व मान तान के नाम पर सैकड़ो के लिए पैसे दिए जाते है।
बुराई यहाँ रस्मो रिवाजों में नहीं है बुरा इनको निभाने और करने वालों ने बना दिया है।
जब लड़के - लड़की ने एक दूसरे को अंगूठी ही पहना ही दी हैं तो आगे सगाई का तो कोई औचित्य ही नहीं बनता फिर कपडे व इतने सारे लेनदेन क्या ये सब ख़ुशी से रस्म पूरी करने आये है या इनको लेने ?
3 - यह एक बड़ी हास्यपद रिवाज है की सभी आये हुए लड़के वाले अंगूठी रस्म यानि अंगूठी पहनने के बाद लड़की को मान के नाम से कुछ रूपए देते है जिसका लड़की वाला दुगना पैसा उनको मान के नाम से देता है।  ये समझ नहीं आया की यह रिवाज क्यों और किस भावना से बनाई गई है की दुगना देगा ?
मेरा अनुभव तो एक बार बहुत ही भयानक हुआ था जिसपर गुस्सा और दुःख हुआ -----
मैं कुछ साल पहले ब्याज पर रूपए देता था ज्यादातर दुकानदार या छोटे काम धंधे वाले लोग मेरे पास आते थे। मेरे पड़ोस में एक हरिजन परिवार रहता हैं एक दिन वह और उसका भांजा मेरे पास आया।  उसने कहा की ये मेरे भांजा हैं इसको 5000 रूपए ब्याज पर चाहिए मैंने कहा की मैं केवल दुकानदारों को ही पैसा ब्याज पर देता हूँ उसने कहा की मैं इसकी गारंटी लेता हूँ ये परसों ही वापस कर देगा और जैसे की तुम चार महीने में ब्याज सहित 5 के 6 हजार वापस लेते हो ये दो दिन के ही एक हजार रूपए सहित 5 के 6 हजार लौटा देगा। 
मैंने उससे कहा की मैं नहीं दे पाउँगा लेकिन ऐसा क्या काम आ गया की दो दिन के एक हजार ब्याज देने पड़ रहे है।  तो जो उसने कारन बताया उससे मेरा दिमाग फटने को हो गया और मैंने उनको अपने ऑफिस से भगाया। 
उसने कहा की मेरे बेटे का रिश्ता पक्का हो गया है और कल लड़की को अंगूठी डालने जायेंगे और हम सब बड़ी मान यानि बाप, चाचा चाची व भाई आदि 5 - 5 हजार रूपए लड़की की झोली में डालेंगे जिसके बदले लड़की वाला सबको 10 - 10 हजार वापस देगा।  परसो ये 6000 तुम्हे देदेगा इसको 4000 बच जायेंगे। 
अब इसको क्या कहेंगे रस्म, रिवाज या स्वंय ही कुछ नाम दो ?
मैं बात कर रहा था एक रिश्तेदार के बेटे की अंगूठी रस्म की।  एक मंहगे रेस्चुरेन्ट में आयोजन किया गया था। फुल ऐसी, म्यूजिक, बढ़िया और कई प्रकार के व्यंजन की व्यवस्था थी।  हम (लड़के वाले) लगभग 35 - 40 लोग थे जिसमे 5-6 स्त्रियां 3-4 बच्चे थे।
हमें सुबह 11 बजे वहां पहुँचने के लिए बोला गया था और लगभग सभी असमय पर पहुँच गए थे।  जाते ही उनका नाश्ता - पानी शुरू हो गया था जिसमे गोलगप्पे, कई प्रकार के पकोड़े, सूप से लेकर खाने में कई प्रकार की सब्जियों सहित मिठाई वैगरह सब था।
कई रिश्तेदारों के साथ लड़का भी आया हुआ था। अंगूठी की रस्म लगभग 2.5 बजे हुयी हम लोग तीन - चार घंटे बस यु ही वहां पड़े रहे।  सभी पुरुष एक तरफ बैठे थे लड़के - लड़की ने कब अंगूठी पहना दी हमें पता भी नहीं चला। ऐसा लगा की पुरुष तो बेकार में केवल भीड़ के लिए बुलाये गए थे।  सब बैठे केवल टाइम पास कर रहे थे।  और बार - बार ये कह रहे थे पता नहीं कितनी देर और यहाँ बैठना पड़ेगा।
अंगूठी के बाद फोटो शुरू हो गए मंच पर लड़के - लड़की के लिए कुर्सियां लगी थी लगभग 1 घंटे से ज्यादा फोटो सेसन चला।  जिस दौरान लड़के की तरफ से आये लोगों ने लड़की को 100 -100 रूपए दिए मैंने भी दिए।  ये 100 रूपए देना लड़के के ताऊ ने तय किया था और सबको कह दिया था की हम लड़की को 100 - 100 रुपय देंगे।  मैंने सोचा चलो ज्यादा से ज्यादा अब लड़की वाला 200 रूपए ही मान - तान के नाम से देगा लेकिन हद तो जब हो गई -
- सबको 1100 - 1100 रुपय
- एक - एक चंडी का सिक्का
- एक- एक सफारी सूट
- मिठाई का डब्बा
- और जो लड़की के मामा आधी आये हुए थे उन्होंने 600 - 600 रूपए दिए
इसके आलावा
- लड़के के माँ - बाप को सोने का सिक्का
- लड़के को अंगूठी
- महंगा सूट
- सबी महिलाओं को महंगा सूट
दिया गया।  और सब ऐसे लाइन में लगकर ले रहे थे जैसे प्रसाद ले रहे हो।  सब आपस में चर्चा कर रहे थे कहा की मौज कर दी।
मैंने सरे खर्च का हिसाब लगाया जो लगभग 6-7 लाख के करीब पड़ रहा था।
सारा ढकोसला और नाटक की तरह चल रहा था मुझे कंही से भी ये प्रोग्राम शादी की रस्म नहीं लगी।  यह रस्म घर में महिलाओं दुआरा मनाई जाती है।  जब हम खाली बैठे थे तो ऐसा लग रहा था की किसी रेस्चुरेन्ट में खाना खाने आये हुए हैं।  कोई हंसी - ख़ुशी या महिलाओं के गीत नजर नहीं आ रहे थे बस अपनी - अपनी हैसियत का प्रदर्शन ही नजर आ रहा था।
लड़के का मुंह घमंड से ऊँचा उठा हुआ था और लड़की के भाव एक परेशान नाटक की कलाकार की तरह लग रहा था हो बस मंच पर एक कठपुतली की तरह खड़ी थी। जो भी आता 100 रूपए हाथ में देता और वह झुककर बस पैर छूती अब तो उसके चेहरे पर मुस्कान की बजाये परेशानी और थकान ज्यादा नजर आ रही थी।  मुझे लग रहा था बार - बार पैर छूने से शायद उसकी कमर में भी दर्द होने लगा था।
- ये सब क्या था ? मैं अभी तक नहीं समझ पाया हूँ।  जिससे भी बात की सब ने कहा की एहि ही रिवाज है। 
क्या ये रिवाज है ?
- या रिवाजों - रस्मों के नाम पर ढकोसला हो रहा हैं ?
मैंने कई साल संस्था का प्रतिनिधित्व करते हुए बेटी बचाओ आंदोलन चलाया और यह लड़का और इसकी माँ ने उनमे भाग भी लिए जिसमे हमारा फोकस ज्यादातर शादी के नाम से चल रही कुरूतियों पर ही रहा हैं लेकिन आज लगा की हम सफल नहीं हो पाये। 
कैसे दूर होंगी ये कुरुतियां ? समझ नहीं आ रहा।  जब नौजवान और पूरी तरह संपन्न युवक भी समझ नहीं पा रहे।  क्या होगा हमारे समाज का ?

Friday, October 16, 2015

Bel Sweet

Bel SweetIt is Best for Stomach and It also removes Abdominal pain and spasm Bel sweet a nutritious, tasty and delicious preparation removes constipation, acidity and gas.
Actions:Best food supplement for stomach,Great appetizer,Being a fruit, Bel sweet can also be used in fast,Improves digestion and so keeps your body healthy.Ailments:Keeping away from loose motion, blood with stool, dysentery, mucus and amoebasis Abdominal pain and spasm,Constipation, acidity and gas.

Available at 
Nirmala House
(Organic & Herbal Grocery Store)
A-64 Palam Ext. Sec-7 Dwarka
New Delhi-110061
Contact:
Naresh Lamba
9891550792

Thursday, October 15, 2015

Hand Wheel Hoe and Mini Cultivator



आदमी हूँ, भँवर में रहता हूँ

देवता होता तो निकल पाता
आदमी हूँ, भँवर में रहता हूँ

इंसान की जिन्दगी मोह के भंवर में फंसी हैं
सच्चाई का दामन थाम इसे पर कर जाओ
नजरे तो धोखा हैं मिथ्या दिखती हैं 
दिमाग उलझन हैं सोच इसका सफ़र 
दिल की आवाज सुनो ये ईश्वर की नेमत हैं
अपने आप को पहचानो तुम इंसान हो
चलो अपनी राह पर जब तक रौशनी न मिल जाये
निशा अपने कदमो के छोड़ जाओ धरती पर .
उठो पार्थ, गांडीव संभालो,दूर करो अपनी दुविधा
युद्ध धरम हैं, युद्ध कर्म हैं, मात्र शेष यदि युद्ध विधा.
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Saturday, May 2, 2015

ORGANIC MANURE FROM KITCHEN WASTE

ORGANIC MANURE FROM KITCHEN WASTE

रसोई घर से निकले सब्जियों के पत्तें / छिलके / चाय पत्ती/ सूखी रोटी / आटा / बेसन आदि से घर में ही बनाये बेहतर जैविक खाद। 
पर्यावरण क्षेत्र से जुड़ी एक संस्था के सर्वे के अनुसार दिल्ली और अन्य भारतीय आम शहरी औसत परिवार की रसोई से 800 ग्राम से 1 किलो 50 ग्राम हरा कचरा फल एवं सब्जियों के छिलके, चाय पत्ती और बचे हुए सूखे आटे के रूप में निकलता है। यह अन्य कचरे के साथ मिलकर कूड़ाघर में जाता है या अन्य जगह फेंक दिया जाता है जो बेकार है और बदबू का भी कारण बनता है।
इस खुले में फेंके गए हरे कचरे पर गाय व अन्य पशु आकर्षित होते है। सड़ने पर यह कचरा जहरीला हो जाता है और अक्सर पॉलिथीन में कचरा डेल जाने से पशु कचरे को पॉलिथीन समेत निगल जाते है जिससे उनमे कई तरह की संक्रमक बीमारिया हो जाती है और पशु मर जाते है।  शहरो में सबसे ज्यादा गाय इससे प्रभावित हो रही है। 
अगर शहरी लोगो में थोड़ी सी जागरूकता आ जाये तो केवल दो से पांच मिनट्स दिन में अतिरिक्त देकर न केवल इन गायों को बचा सकते है साथ ही घर पर ही बेहद उम्दा किस्म की 5-6 जैविक खाद भी हर महीने बना सकते हैं।  जो हमारे किचन गार्डन के लिए या अन्य पेड़ पौधों के लिए काफी उपयोगी होती हैं। 
 बाजार में उपलब्ध जैविक खाद काफी महंगी होती है। घरों में आने वाले माली 20 रू की 50 ग्राम खाद देते हैं। इसप्रकार खाद 400 रू किलो पड़ती हैं। 
घर में रसोई से निकलने वाले हरे कचरे से हम 5-6 खाद प्रति महीने आसानी से बना सकते है। 
खाद बनाने की विधि :-
1- एक माध्यम आकार और क्षमता का मिटटी का ढक्कन सहित घड़ा ले और उसको छाया में रख ले। 
2- सब्जियों के छिलके अलग कर ले।

3- मोटे छिलके या साबुत गली सब्जी को काटकर बारीक़ कर ले।

4- कटे हुए छिलकों को मटके में भर दें।
5- जब भी पत्तें डाले डंडे से अच्छी तरह मिला दे। बाद में मटके को छाया में ढककर रख दे। हफ्ते में एक बार मिश्रण को आपस में मिलाते रहे। 
6- इसप्रकार से उम्दा किस्म की जैविक खाद 25-30 दिनों में तैयार हो जाती हैं। 
खाद की और ज्यादा गुणवत्ता बढ़ाने व जल्द तैयार करने के लिए निम्न तरीका अपनाया जा सकता हैं। 
1- सबसे पहले पत्तों / छिलकों को बारीक़ कर लें। 

2- इसके बाद इसमें पुरानी गोबर या अन्य सड़ी हुयी थोड़ी खाद मिला दे।  यह खाद पत्तों को जल्द गलाने में सहायक बनती हैं।  जैसे दही ज़माने के लिए जामन की आवस्यकता होती हैं उसी प्रकार नयी खाद बनाने के लिए उसमे थोड़ी पुरानी खाद डालनी चाहिए।  
3- इसमें हम थोड़ा बेसन या अन्य बचा हुआ सूखा आटा भी मिला सकते हैं इससे खाद भी जल्द गलेगी और पौष्टिकता भी बढ़ेगी। 
4- इस पुरे मिश्रण को अच्छी तरह मिला ले। 
5- सारे मिश्रण को मटके में भर दे। 

5- खाद की गुणवत्ता के साथ - साथ उसमें पौधे के लिए रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व कीटनाशक क्षमता भी पैदा करने के लिए नीम, धतूरे व आक या अमरुद के पत्तो को मिक्सी में पीसकर या कूटकर चटनी बना ले। अगर सभी उपलबध न हो सके तो इनमे से जो मिल जाये उसी को कूट पीस ले।  इस चटनी की थोड़ी मात्रा मटके में डाल दे। धयान रखे की चटनी में पानी ज्यादा न हो। 
6- मिश्रण में पुराने अख़बार को बारीक़ टुकड़े करके डाल दे। अख़बार जल्द गलते है साथ ही मिश्रण के फालतू पानी को भी सोख लेते हैं।  बाद में भी अगर आपको लगे की पानी ज्यादा है तो अख़बार के टुकड़े इसमें डाल दे। 
7- देशी गाय के गोमूत्र में 36 प्रकार के गुण पाये जाते हैं जिनमे जीवाणु, कीटनाशक व खाद की पौष्टिकता आदि बढ़ाने के गुण होते हैं। अगर देशी गाय का मूत्र मिल जाये तो थोड़ा इस मिश्रण में मिला दे। 
8- सब मिलाने के बाद मटके को ढक्कर छाया में रख दे।  हफ्ते में एक बार डंडे से मिलते रहे। अगर गीलापन ज्यादा लगे तो अख़बार के टुकड़े डाल दे और एक दो दिन मटके को खुला छोड़ दे। 
9- इसप्रकार 25-30 दिनों में बेहद उम्दा, पौष्टिक, कीटनाशक सहित जैविक खाद बनकर तैयार हो जाती हैं। 
ये बिलकुल आसान तरीका है जैविक खाद बनाने का। यह खाद सब्जियों, फूलों व घरेलु पौधों के लिए बहुत लाभकारी है साथ ही बड़े पैमाने पर इसको तैयार करके खेती के इस्तेमाल में भी लाया जा सकता है।  लेखक नरेश लाम्बा दुवारा हर महीने 30-35 मटको में खाद बनायीं जा रही है।  जिसका उपयोग खेती में सफलता पूर्वक किया जा रहा है।
इस खाद में नाइट्रोजन, कार्बन व ऑक्सीजन सहित वे सारे तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं जो किसी भी पौधे की
सम्पूर्ण आवश्यकता को पूरी करते है।  जमीन में इस खाद के डालने से कुछ ही दिनों में करोडो जीवाणु जमीन में पैदा हो जाते है जो प्राकृतिक खाद के निर्माण के साथ - साथ जमीन में पौधों के लिए हानिकारक कीड़ो को भी नस्ट कर देते हैं। ये जीवाणु पौधों की जड़ो तक ऑक्सीजन पहुचने का भी माध्यम बनते हैं। 

Naresh Lamba
President
Social Development Welfare Society (Regd.NGO)
Contact: 9891550792
lamba2512@gmail.com