क्या पहुंचा दोगे मेरी माँ तक मेरा पैगाम
Munim Singh Bhadoria
(Muni)
जब से छोड़ा अपना प्यारा गाँव ,
नहीं मिला है तब से मुझको कोई ठांव .
घर क्या छोड़ा छुट गया है सारा जग,
दर-दर फिरूं भटकता कहीं न मिलता पग.
ओ आकाशी पथ पर चलने वाले घनश्याम,
क्या पहुंचादोगे मेरी माँ तक मेरा पैगाम.
ओ नील गगन के पंछी क्या पार किया है तुमने मेरा देश,
क्या बापू ने भेजा है मुझको कोई सन्देश .
पर बादल पंछी बिना सुने ही उड़ते जाते,
मेरी ब्यथा कथा पर तनिक तरस न खाते I
क्रमश ..................................
मुनीम सिंह
Munim Singh Bhadoria
(Muni)
जब से छोड़ा अपना प्यारा गाँव ,
नहीं मिला है तब से मुझको कोई ठांव .
घर क्या छोड़ा छुट गया है सारा जग,
दर-दर फिरूं भटकता कहीं न मिलता पग.
ओ आकाशी पथ पर चलने वाले घनश्याम,
क्या पहुंचादोगे मेरी माँ तक मेरा पैगाम.
ओ नील गगन के पंछी क्या पार किया है तुमने मेरा देश,
क्या बापू ने भेजा है मुझको कोई सन्देश .
पर बादल पंछी बिना सुने ही उड़ते जाते,
मेरी ब्यथा कथा पर तनिक तरस न खाते I
क्रमश ..................................
मुनीम सिंह